‘ईशà¥à¤µà¤°à¤¾à¤§à¥€à¤¨ करà¥à¤®-फल व सà¥à¤–-दà¥à¤ƒà¤– वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ पर विचार’
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Manmohan Kumar AryaDate
06-Jan-2016Category
à¤à¤¾à¤·à¤£Language
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07-Jan-2016Download PDF
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संसार में मनà¥à¤·à¥à¤¯ ही नहीं अपितॠसमसà¥à¤¤ जड़-चेतन जगत कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¶à¥€à¤² हैं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ पंचà¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ से बनी है जिसकी ईकाई सूकà¥à¤·à¥à¤® परमाणॠहै। यह परमाणॠसतà¥à¤µ, रज व तम गà¥à¤£à¥‹à¤‚ का संघात है। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ परमाणà¥à¤“ं से अणॠऔर अणà¥à¤“ं से मिलकर तà¥à¤°à¤¿à¤—à¥à¤£à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ व सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। परमाणॠमें इलेकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾à¤¨ कण à¤à¥€ निरनà¥à¤¤à¤° गति करते रहते हैं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ से à¤à¥€ पूरà¥à¤µ निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ इन परमाणà¥à¤“ं में इलेकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾à¤¨ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ नियमों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° गति करते आ रहे हैं à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤²à¤¯ अवसà¥à¤¥à¤¾ तक यह कà¥à¤°à¤® निरनà¥à¤¤à¤° चलता रहेगा। मनà¥à¤·à¥à¤¯ व सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ का बाहर आना व अनà¥à¤¦à¤° जाना निरनà¥à¤¤à¤° होता रहता है। पलकें à¤à¥€ निरनà¥à¤¤à¤° à¤à¤ªà¤•à¤¤à¥€ रहती हैं। जागृत अवसà¥à¤¥à¤¾ में मनà¥à¤·à¥à¤¯ का मन à¤à¥€ निरनà¥à¤¤à¤° कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¶à¥€à¤² रहता है। मन आतà¥à¤®à¤¾ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ लेता है और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤®à¥‡à¤¨à¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को करà¥à¤®à¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤ करता है। उठना-बैठना, चलना-फिरना, सोना-जागना, शौच जाना, à¤à¥‹à¤œà¤¨ करना, मल-मूतà¥à¤° का तà¥à¤¯à¤¾à¤— आदि à¤à¥€ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ à¤à¤µà¤‚ करà¥à¤® हैं जो जीवित रहने के लिठआवशà¥à¤¯à¤• हैं। इनसे à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ किसी विषय का चिनà¥à¤¤à¤¨ वा विचार, तदनà¥à¤¸à¤¾à¤° शरीर को उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤ कर इचà¥à¤›à¤¿à¤¤ परिणाम पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना आदि à¤à¥€ सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ करते हैं। हमारे यह सà¤à¥€ करà¥à¤® हमारी शारीरिक, बौदà¥à¤§à¤¿à¤•, सामाजिक व आतà¥à¤®à¤¿à¤• उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ का आधार होते हैं। हमारे अनेक कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ वा कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ परà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¤£-परिवेश-वातावरण व दूसरे मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर à¤à¥€ पड़ता है। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से दूसरे मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ वा कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ à¤à¥€ हम पर पड़ता है। अन करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का यदि विà¤à¤¾à¤œà¤¨ व वरà¥à¤—ीकरण किया जाये तो मà¥à¤–à¥à¤¯à¤¤à¤ƒ यह शà¥à¤ व अशà¥à¤ करà¥à¤® कहे जा सकते हैं। हमारे जिन करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से हमें लाठहोता है परनà¥à¤¤à¥ दूसरे निरà¥à¤¦à¥‹à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ वा मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से हानि नहीं पहà¥à¤‚चती, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शà¥à¤ करà¥à¤® कहा जा सकता है और इसके विपरीत करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को अशà¥à¤ कहा जा सकता है। करà¥à¤®-फल वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ à¤à¤• शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ वचन है ‘अवशà¥à¤¯à¤®à¥‡à¤µ हि à¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤‚ कृतं करà¥à¤® शà¥à¤à¤¾à¤¶à¥à¤à¤‚।’ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को अपने किये हà¥à¤ शà¥à¤ व अशà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फल à¤à¥‹à¤—ने ही होते हैं।
करà¥à¤®à¤«à¤² वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ के सनà¥à¤¦à¤°à¥à¤ में सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ को जानना à¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हà¥à¤ˆ? इसका उतà¥à¤¤à¤° चारों वेदों à¤à¤µà¤‚ समसà¥à¤¤ वैदिक व अवैदिक साहितà¥à¤¯ के मरà¥à¤®à¤œà¥à¤ž महरà¥à¤·à¤¿ दयाननà¥à¤¦ ने सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ में दिया है। सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶ के अषà¥à¤Ÿà¤®à¥ समà¥à¤²à¥à¤²à¤¾à¤¸ में वह ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ के à¤à¤• मनà¥à¤¤à¥à¤° ‘इयं विसृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤°à¥à¤¯à¤¤ आ बà¤à¥‚व यदि वा दधे यदि वा न। यो असà¥à¤¯à¤¾à¤§à¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¤ƒ परमे वà¥à¤¯à¥‹à¤®à¤¨à¥à¤¤à¥à¤¸à¥‹ अंग वेद यदि वा न वेद।।’ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ कर इसका अरà¥à¤¥ करते हà¥à¤ लिखते हैं कि जिस से यह विविध सृषà¥à¤Ÿà¤¿ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆ है, जो धारण और पà¥à¤°à¤²à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ है, जो इस जगतॠका सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ है, जिस सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• सतà¥à¤¤à¤¾ में यह सब जगतॠउतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿, सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤²à¤¯ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है, सो परमातà¥à¤®à¤¾ है। उस को, हे मनà¥à¤·à¥à¤¯ ! तू जान और दूसरे किसी को सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ मत मान। इस मनà¥à¤¤à¥à¤° में ईशà¥à¤µà¤° की सतà¥à¤¤à¤¾ तथा उसके सृषà¥à¤Ÿà¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने के कारà¥à¤¯ को बताया गया है। ईशà¥à¤µà¤° व सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को जान लेने के बाद पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ होता है कि ईशà¥à¤µà¤° ने यह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ व किस पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ के लिठबनाई है? सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को देखकर ईशà¥à¤µà¤° का अपना कोई निजी पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ विदित नहीं होता। हम संसार में उदà¥à¤¯à¥‹à¤—ों को देखते हैं जहां विवधि वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ होता है जिसे उदà¥à¤¯à¥‹à¤—पति दूसरे लोगों के उपयोग व धन कमाने के लिठकरता है। उदà¥à¤¯à¥‹à¤—पति मनà¥à¤·à¥à¤¯ है अतः उसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ धन कमाना है व इससे अनà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का हित à¤à¥€ जà¥à¤¡à¤¼à¤¾, परनà¥à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° मनà¥à¤·à¥à¤¯ नहीं है, वह धन व à¤à¤¸à¥‡ किसी कारà¥à¤¯ के लिठसृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना व पालन आदि कारà¥à¤¯ नहीं करता। उसे किसी से किसी पदारà¥à¤¥ की अपेकà¥à¤·à¤¾ à¤à¥€ नहीं है। हां, जीवों को सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤– का मिलना इसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है। ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ के मनà¥à¤¤à¥à¤° ‘दà¥à¤µà¤¾ सà¥à¤ªà¤°à¥à¤£à¤¾ सयà¥à¤œà¤¾ सखाया समानं वृकà¥à¤·à¤‚ परि षसà¥à¤µà¤œà¤¾à¤¤à¥‡à¥¤ तयोरनà¥à¤¯à¤ƒ पिपà¥à¤ªà¤²à¤‚ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¥à¤µà¤¤à¥à¤¤à¥à¤¯à¤¨à¤¶à¥à¤¨à¤¨à¥à¤¨à¤¨à¥à¤¯à¥‹ अà¤à¤¿ चाकशीति।।’ के शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ तयोरनà¥à¤¯à¤ƒ व सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¥à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¿ में कहा गया है कि (तयोरनà¥à¤¯à¤ƒ) इस संसार में जीव व बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® में से à¤à¤• जो जीव है वह इस वृकà¥à¤· रूप संसार में पापपà¥à¤£à¥à¤¯à¤°à¥‚प फलों को (सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¥à¤µà¤¤à¥à¤¤à¤¿) अचà¥à¤›à¥‡ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¾ है। यहां कहा गया है कि जीवातà¥à¤®à¤¾ अपने शà¥à¤ व अशà¥à¤ जो पà¥à¤£à¥à¤¯ व पाप करà¥à¤® कहे जाते हैं उनके फलों अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤–ी रूपी à¤à¥‹à¤—ों को à¤à¥‹à¤•à¥à¤¤à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ उनका परिणाम व फल को पाता व गà¥à¤°à¤¹à¤£ करता है। वेद अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के आधार पर जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि ईशà¥à¤µà¤° ने इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ को जीवों के पाप व पà¥à¤£à¥à¤¯à¤°à¥‚पी करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फलों को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने के लिठही अपनी सामथà¥à¤°à¥à¤¯ से मूल-कारण पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना की है। शà¥à¤µà¥‡à¤¤à¤¾à¤¶à¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¨à¤¿à¤·à¤¦à¥ के शà¥à¤²à¥‹à¤• ‘अजामेकां लोहितशà¥à¤•à¥à¤²à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤£à¤¾à¤‚ बहà¥à¤µà¥€à¤ƒ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ƒ सृजमानां सरूपाः। अजो हà¥à¤¯à¥‡à¤•à¥‹ जà¥à¤·à¤®à¤¾à¤£à¥‹à¤½à¤¨à¥à¤¶à¥‡à¤¤à¥‡ जहातà¥à¤¯à¥‡à¤¨à¤¾à¤‚ à¤à¥à¤•à¥à¤¤à¤à¥‹à¤—ामजोऽनà¥à¤¯à¤ƒà¥¤à¥¤’ में कहा गया है कि इस अनादि पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का à¤à¥‹à¤— करता हà¥à¤† अनादि जीवातà¥à¤®à¤¾ उसमें फंसता है। फंसने का तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ है कि जीवातà¥à¤®à¤¾ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ में फलों व सà¥à¤– की कामना से करà¥à¤® करता हà¥à¤† इसमें फंसता है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° की करà¥à¤®-फल वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ में बंधता है। यदि इसे उलट दिया जाये तो इसका अरà¥à¤¥ होता कि यदि जीव संसार में सà¥à¤– आदि à¤à¥‹à¤—ों की इचà¥à¤›à¤¾ से रहित होकर ईशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ व परोपकारादि करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को करता है तो वह बनà¥à¤§à¤¨à¥‹à¤‚ में फंसता नहीं अपितॠमà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है।
उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ ‘दà¥à¤µà¤¾ सà¥à¤ªà¤°à¥à¤£à¤¾ सयà¥à¤œà¤¾ सखाया’ मनà¥à¤¤à¥à¤° में ईशà¥à¤µà¤°, जीव व पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ को अनादि बताया गया है। यह तीनों पदारà¥à¤¥ वा सतà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ अनादि काल से विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं। ईशà¥à¤µà¤° को उपादान कारण पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना करने व इसे चलाने का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• रूप से अनादि काल से है। जीवों को मनà¥à¤·à¥à¤¯ या पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के शरीर चाहियें तà¤à¥€ वह अपनी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व करà¥à¤® सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ वाली सतà¥à¤¤à¤¾ का उपयोग अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पूरà¥à¤µ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का à¤à¥‹à¤— व नये करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को कर सकते हैं। यदि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ न हो तो उनका असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ निररà¥à¤¥à¤• सिदà¥à¤§ होता है। यदि ईशà¥à¤µà¤° सृषà¥à¤Ÿà¤¿ बनाने की सामथà¥à¤°à¥à¤¯ रखता है, वह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना न करे तो उसका असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ होना उपयोगी नहीं और उसका ईशà¥à¤µà¤°à¤¤à¥à¤µ वा सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤¤à¥à¤µ à¤à¥€ किसी काम का नहीं। इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से यदि सृषà¥à¤Ÿà¤¿ न रची जाये तो इसका असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ à¤à¥€ निररà¥à¤¥à¤• ही सिदà¥à¤§ होता है। अतः जीवों को अपने अपने पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ का à¤à¥‹à¤— और नये करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को करने के लिठईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उपादान कारण पà¥à¤°à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का उपयोग कर सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना करना आवशà¥à¤¯à¤• है। ईशà¥à¤µà¤° कà¥à¤› जीवों को मनà¥à¤·à¥à¤¯ और किनà¥à¤¹à¥€à¤‚ को à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ योनियों में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करता है, इसका आधार जीवों के सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के पूरà¥à¤µ कलà¥à¤ªà¥‹à¤‚ वा पूरà¥à¤µà¤œà¤¨à¥à¤®à¥‹à¤‚ के करà¥à¤® वा उन करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का संचय रूपी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ होता है। यह उतà¥à¤¤à¤° वैदिक दारà¥à¤¶à¤¨à¤¿à¤•à¥‹à¤‚ ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ विषयक तथà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का सूकà¥à¤·à¥à¤® विवेचन करने पर पाया है। इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° से ईशà¥à¤µà¤° पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤ रहित नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€ सतà¥à¤¤à¤¾ सिदà¥à¤§ होती है। ईशà¥à¤µà¤° के सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• व सरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€ होने से वह सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के सà¤à¥€ जीवों का सà¤à¥€ कालों में साकà¥à¤·à¥€ होता है। उसे हर जीव के हर करà¥à¤® का यथावतॠअरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मन व आतà¥à¤®à¤¾ के आनà¥à¤¤à¤°à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ से लेकर करà¥à¤® का निरà¥à¤£à¤¯ करने से करà¥à¤® को करने तक का ठीक-ठीक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ रहता है, अतः उसे जीवों के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल देने में किसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की समसà¥à¤¯à¤¾ व कठिनाई नहीं होती।
संसार में à¤à¤• नियम काम कर रहा है कि हम जो à¤à¥€ करà¥à¤® करते हैं उनमें से कà¥à¤› कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤®à¤¾à¤£ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल हमें साथ-साथ व कà¥à¤› का कालानà¥à¤¤à¤° में मिलता है। जीवन के अनà¥à¤¤ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ मृतà¥à¤¯à¥ से पूरà¥à¤µ करà¥à¤® जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤®à¤¾à¤£ करà¥à¤® कहा जाता है, उनका फल साथ-साथ मिल जाता है और अवशिषà¥à¤Ÿ संचित करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल मृतà¥à¤¯à¥ तक नहीं मिलता। इससे यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ होता है कि करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ व à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ दोनों कालों में सà¥à¤– व दà¥à¤ƒà¤– के रूप में मिलता है। इससे यह à¤à¥€ सिदà¥à¤§ है कि हमारा वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ का सà¥à¤– व दà¥à¤– हमारे कà¥à¤› वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ और कà¥à¤› पूरà¥à¤µ समय अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ à¤à¥‚तकाल में किये हà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ पर आधारित है। मृतà¥à¤¯à¥ के समय जिन शà¥à¤ व अशà¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल à¤à¥‹à¤—ने से रह जाता है, पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤˜ नामी करà¥à¤® कहलते हैं, यह पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ ही à¤à¤¾à¤µà¥€ जनà¥à¤® अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¤¨à¥à¤® का आधार है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ के जैसे करà¥à¤® व पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ होगा, उसी के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° नये जनà¥à¤® में जाति, आयॠऔर à¤à¥‹à¤— पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होंगे। योगदरà¥à¤¶à¤¨ की यह बात तरà¥à¤• à¤à¤µà¤‚ यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ संगत है। वेदों व सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ आदि के आधार पर मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सनà¥à¤§à¥à¤¯à¤¾ व दैनिक अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° यजà¥à¤ž सहित पितृयजà¥à¤ž, अतिथियजà¥à¤ž तथा बलिवैशà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤µà¤¯à¤œà¥à¤ž करने का विधान है। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ करने से हमारा वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ जीवन और à¤à¤¾à¤µà¥€ जीवन सà¥à¤§à¤°à¤¤à¤¾ व संवरता है। वेद ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरमà¥à¤ से लेकर महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ काल तक और उसके बाद à¤à¥€ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वेद मारà¥à¤— पर ही चलने का निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ दिया गया है। हमारे पूरà¥à¤µà¤œ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से पूरà¥à¤£ सतà¥à¤¯ का आचरण करने वाले थे, अतः उनकी यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ व तरà¥à¤• संगत बातों को सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को मानना चाहिये। शंकालॠबनà¥à¤§à¥à¤“ं को वेद, दरà¥à¤¶à¤¨, उपनिषद, मनà¥à¤¸à¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ व सतà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤•à¤¾à¤¶ आदि गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर अपनी à¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दूर करनी चाहिये। संसार के अनà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ कर इस विषय का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ व समाधान नहीं होता। सà¤à¥€ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल ईशà¥à¤µà¤° देता है। किस करà¥à¤® का कà¥à¤¯à¤¾ फल होता है, यह ईशà¥à¤µà¤° को जà¥à¤žà¤¾à¤¤ है जो कि उसकी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से हमें व सà¤à¥€ जीवों व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को अवशà¥à¤¯ मिलेगा। हमें ईशà¥à¤µà¤° के पकà¥à¤·à¤ªà¤¾à¤¤ रहित व नà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤•à¤¾à¤°à¥€ होने में पूरा विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ रखते हà¥à¤ बà¥à¤°à¥‡ करà¥à¤® नहीं करने चाहिये और अपने सà¤à¥€ अचà¥à¤›à¥‡ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को ईशà¥à¤µà¤° को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर निशà¥à¤šà¤¿à¤¨à¥à¤¤ होना चाहिये। इसका परिणाम शà¥à¤ होगा।
यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के चालीसवें अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ के दूसरे मनà¥à¤¤à¥à¤° में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वेदविहित करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को करते हà¥à¤ सौ वरà¥à¤· जीने की कामना करने की शिकà¥à¤·à¤¾ दी गई है। वेद विहित करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ अशà¥à¤ व पाप करà¥à¤®à¥‹à¤‚ करने से बच जाता है जिसका परिणाम दà¥à¤ƒà¤–ों से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ व सà¥à¤–ों में वृदà¥à¤§à¤¿ होता है। वेद विहित करà¥à¤® न केवल सà¥à¤–ों की वृदà¥à¤§à¤¿ वा दà¥à¤ƒà¤–ों की निवृति का आधार हैं वहीं इनसे मोकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ à¤à¥€ होती है। अतः सदà¥à¤•à¤°à¥à¤®à¥‹à¤‚ को करने के साथ सà¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को इनका पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ à¤à¥€ करना चाहिये।
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